मां में आशा है मां में है अभिलाषा ।




प्रकृति और जहान से लेकर इस पूरी सृष्टि की उत्पत्ति और निर्भरता से लेकर आत्मनिर्भरता तक जरूरत है । एक मां की एक मां चाहे वो एक घर में काम करने वाली अनपढ़ हो या किसी कॉलेज में पढ़ाने वाली शिक्षक या किसान वो मां जो जमीन अपना सीना चीरकर मानव संसाधनों के लिए फसल तैयार करती है । आशा और निराशा दोनों ही मां की आंख हैं जो सब कुछ देखती है अपनी इन्हीं दोनों आंखों से अच्छा भी बुरा भी उदाहरण के लिए हम समझते हैं एक पेड़ है जिसे एक आदमी ने तैयार किया है हवा और साथ देने के लिए दूसरे आदमी ने उसे कांटा अपने घर का चूल्हा जलाने के लिए और अपना घर चलाने के लिए अब मां को अपने दोनों बच्चों को देखना है दोनों उसके ही अंश हैं अब बात आती है अभिलाषा की मां के पास भी तीसरी आंख है जो उसके मस्तिष्क में नहीं दिल से धड़कती है । यह आप सिर्फ न्याय करती है एक का पसीना लगा हवा और सांस बनाने में और प्रकृति का निर्माण करने में दूसरे ने भी पसीना लगाया केवल अपना घर चलाने के लिए और अपने परिवार का पालन पोषण करने के लिए। पहले वाले ने पहले वाले ने भोजन खाकर ऊपर वाले का शुकराना अदा किया मां ने दुआ कबूल करें पहला वाला बना जीवन दाता जिसने मेहनत की प्रकृति के निर्माण के लिए दूसरा वाला बना लकड़हारा एक को मिला सम्मान दूसरा रह गया बेजान एक मजबूत है तो दूसरा मजबूर है।

Journalist Rahul kumar shukla 

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